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अगर बाँटने निकलो जग का ग़म / डी. एम. मिश्र

अगर बाँटने निकलो जग का ग़म
तो अपना दुख भी हो जाये कम।

दुनिया से उम्मीद रखो उतनी
जितने से सम्बन्ध रहे कायम।

इस आँसू से जग का दुख सींचो
तपते मौसम को कर दो कुछ नम।

मुक्त आप हर चिंता से हो जांय
सिर्फ़ त्याग दें अपना आप अहम।

खिड़की खेालो तो प्रकाश आये
भीतर का छँट जाये सारा तम।