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अगर लिखना मना है तो क़लम का कारख़ाना क्यों / राकेश जोशी

अगर लिखना मना है तो क़लम का कारख़ाना क्यों
अगर पढ़ना मना है तो यहाँ काग़ज़ बनाना क्यों

इसी दुनिया में बेहतर इक नई दुनिया बसाने को
यहाँ तक आ गए हैं तो यहाँ से लौट जाना क्यों

वहाँ लेकर ही क्यों आया जहाँ फिसलन ही फिसलन है
ये जनता है, नहीं समझी, तू राजा है तू माना क्यों

कई बरसों से इस पर ही बहस ज़ारी है संसद में
जो भेजा एक रूपया था, तो पहुँचा एक आना क्यों

तुम्हें गर आसमां की सैर करनी थी तो कर लेते
कहीं पर बाढ़-सूखे का ही हरदम यूं बहाना क्यों

अगर जंगल को फिर से एक दिन जंगल बनाना था
यहाँ आकर शहर में फिर बनाया आशियाना क्यों