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"अगर हम अपने दिल को / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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अगर हम अपने दिल को अपना इक चाकर बना लेते
 
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तो अपनी ज़िदंगी को और भी बेहतर बना लेते
 
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ये काग़ज़ पर बनी चिड़िया भले ही उड़ नहीं पाती
ये काग़ज़ पर बनी चिड़िया भले ही उड़ नही पाती
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मगर तुम कुछ तो उसके बाज़ुओं में पर बना लेते
 
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अलग रहते हुए भी सबसे इतना दूर क्यों होते
 
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अगर दिल में उठी दीवार में हम दर बना लेते
 
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हमारा दिल जो नाज़ुक फूल था सबने मसल डाला
 
हमारा दिल जो नाज़ुक फूल था सबने मसल डाला
 
 
ज़माना कह रहा है दिल को हम पत्थर बना लेते
 
ज़माना कह रहा है दिल को हम पत्थर बना लेते
 
  
 
हम इतनी करके मेहनत शहर में फुटपाथ पर सोये
 
हम इतनी करके मेहनत शहर में फुटपाथ पर सोये
 
 
ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते
 
ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते
 
  
 
'कुँअर' कुछ लोग हैं जो अपने धड़ पर सर नहीं रखते
 
'कुँअर' कुछ लोग हैं जो अपने धड़ पर सर नहीं रखते
 
 
अगर झुकना नहीं होता तो वो भी सर बना लेते
 
अगर झुकना नहीं होता तो वो भी सर बना लेते
 
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'''''-- यह ग़ज़ल Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गई है।'''''
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11:40, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

अगर हम अपने दिल को अपना इक चाकर बना लेते
तो अपनी ज़िदंगी को और भी बेहतर बना लेते

ये काग़ज़ पर बनी चिड़िया भले ही उड़ नहीं पाती
मगर तुम कुछ तो उसके बाज़ुओं में पर बना लेते

अलग रहते हुए भी सबसे इतना दूर क्यों होते
अगर दिल में उठी दीवार में हम दर बना लेते

हमारा दिल जो नाज़ुक फूल था सबने मसल डाला
ज़माना कह रहा है दिल को हम पत्थर बना लेते

हम इतनी करके मेहनत शहर में फुटपाथ पर सोये
ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते

'कुँअर' कुछ लोग हैं जो अपने धड़ पर सर नहीं रखते
अगर झुकना नहीं होता तो वो भी सर बना लेते