अगर हम फायदे नुकसान को ही तोलते रहते,
तो क्या बेख़ौफ़ होकर इस तरह सच बोलते रहते.
यही मक़सद रहा होता, हमें पैसा कमाना है,
कहीं भी बैठ कर लफ़्ज़ों में शक्कर घोलते रहते.
हमारे सोच में इंसानियत गर मर गयी होती,
तुम्हारे नाम का बिल्ला लगा कर डोलते रहते.
क़लम का साथ हमको मिल गया तो बच गए वरना,
हमेशा पत्थरों से आइनों को तोलते रहते.
किसी के सोच पर इतना अँधेरा जम नहीं पाता,
अगर हम लोग रौशनदान जब तब खोलते रहते.