भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगर / अरविंद बख्शी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:56, 25 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविंद बख्शी }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> अगर उन्ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर उन्हें आवाज मिले तो
क्या बोलेंगे फूल,
सबसे पहले वह बोलेंगे
हमें तोड़ना भूल।

अगर उन्हें उड़ना आ जाता
काँटा क्या कर पाते,
मधुमक्खी सा डंक चुभोकर
सबको मज़ा चखाते।

अगर भागना उनको आता
पौधे ये कर जाते,
आता हुआ देख दुश्मन को
झट से रेस लगाते।