भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगहन आरोॅ किसान / अवधेश कुमार जायसवाल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:57, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवधेश कुमार जायसवाल |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अइलै अगहन मास
ओस गिरै छै घासोॅ पर
चमकै छै मोती रंग चमचम
कोयल कूकै गाछी पर।
गुन-गुन रौदा अच्छा लागै
सूटर फबलै सांझ पर
आबेॅ नै टपकै गाल पसीना
धानोॅ केॅ अटिया टालोॅ पर।
टूटलोॅ खटिया पर बैठी किसनमा
गुड़ गड़ हुक्का पीयै छै
हाथ कलेवा लेने घरनी
धान देखी केॅ रीझै छै।
धान डंगैतेॅ मन-मन सोचै
कोनी कोठी में राखबै धान
कर्जा-बर्जा चुकता करबै
बेटी केॅ छेदबैबै कान।
कानोॅ में बाली, नाकोॅ में बेसर
बेटी लगतै राज कुमारी
आबेॅ नै रहतै ऊ कुमारी।
लाल दोशाला पीरी चोली
लहंगा गोटा चम-चम-चम
बाँही में पहुँची गोड़ोॅ में छाड़ा
डोली चढ़तै छम-छम-छम।