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अग्नि-1 / मालचंद तिवाड़ी

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दाह नहीं है अग्नि
स्पर्श है उजियारे का

जलताहै उतना
जितना अंधेर है

जलता है जो नहीं
लौटता फिर से
लौटी थीं जैसे
जानकी !

अनुवादः नीरज दइया