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अग्नि-3 / मालचंद तिवाड़ी

कहां होती है
जब नहीं होती
अग्नि !

जल
थल
नभ
हवा ?

अदृश्य नहीं होती अग्नि
दृष्टि में ही सो जाती है !

अनुवादः नीरज दइया