भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अग्नि शय्या पर सो रहे हैं लोग / एहतराम इस्लाम
Kavita Kosh से
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:19, 5 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एहतराम इस्लाम |संग्रह= है तो है / एहतराम इस्लाम }} …)
अग्नि शय्या पर सो रहे हैं लोग
किस कार्ड सर्द पड़ चुके हैं लोग
तोडना चाहते हैं अमृत फल
जहर के बीज बो रहे हैं लोग
मंजिलों की तलाश है इनको
एक दर पर खड़े हुए हीं लोग
कापते हीं सड़क पे सर्दी से
बंद कमरों में खौलते हैं लोग
स्वर्ग से अप्सराएँ उतारी हैं
स्वप्न भी खूब देखते हैं लोग