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अचक आय अँगुरी पकरी / ब्रजभाषा

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जाने कैसी करी अचक आय अँगुरी पकरी॥ टेक
अँगुरी पकर मेरी पहुँचौ पकर्यौ,
अब कित जाऊँ गिरारौ सकरौ।
मिलवे की लागी धक री॥ जानै.

जो सुनि पावेगी सास हमारी,
नित उठि रार मचावेगी भारी।
मोतिन सौं भरी माँग बिगरी॥ जानै.

श्री मुख चन्द्र कमरिया बारौ,
सालिगराम प्रानन कौ प्यारौ।
अन्तर कौ कारौ कपटी॥ जानै.