(राग जोगिया-ताल मूल)
अचल सरल उन्नत सुदिव्य वपु, कपिश-केश-चूड़ा नागेश।
नीलकण्ठ, नासाग्र दृष्टि स्थिर, मुक्त-नाग हार गल देश॥
क्रञेडस्थित कर-कमल, समुज्ज्वल ज्योति, प्राण-तन मन निस्पन्द।
व्याघ्रचर्म-आसन शुचि शोभित शिव योगेश सच्चिदानन्द॥
(राग जोगिया-ताल मूल)
अचल सरल उन्नत सुदिव्य वपु, कपिश-केश-चूड़ा नागेश।
नीलकण्ठ, नासाग्र दृष्टि स्थिर, मुक्त-नाग हार गल देश॥
क्रञेडस्थित कर-कमल, समुज्ज्वल ज्योति, प्राण-तन मन निस्पन्द।
व्याघ्रचर्म-आसन शुचि शोभित शिव योगेश सच्चिदानन्द॥