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अचानक छाए
बादलों की परछाईं की तरह
समुद्री परी-सी उभर आई वह
जल के भीतर से
फिसली ज़रा, घबराई वह
फिर फड़फड़ाई ऐसे
टकराई हो
व्याकुल-हृदय सागर-तट से जैसे
बह रही है शान्त हल्की हवा
फरफरा रहा है नैया का पाल
सनसना रहा है, झनझना रहा है
शुभ्र-श्वेत परदा विशाल
झिझक रहा है, पीछे हट रहा है
मानों कोई आस नहीं हो
डर रहा है पुनः तट को छूने में
जैसे अब साहस नहीं हो
जलतरंगों के धक्के से
नैया हिल रही है ऐसे
दूर कहीं पर काँप रही हो
किसी पेड़ की पत्ती जैसे
1910