Last modified on 10 फ़रवरी 2022, at 11:29

अच्छा! / नवीन कुमार

Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 10 फ़रवरी 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं रोना चाहता था और
सो जाना चाहता था

कल को
किसी प्रेम पगी स्त्री का विलाप सुन नहीं सकूँगा
पृथ्वी पर हवाएं उलट पलट जाएंगी
समुद्र की लहरें बिना चांदनी के ही
अर्द्धद्वितीया को तोड़-तोड़ उर्ध्वचेतस् विस्फोट करेंगी

मैंने प्रेम करना चाहा
सारी पृथ्वी को
अपने को नहीं
लोगों ने समझाया 'ये तुम्हीं हो जिसके कारण तुम जीते
मैंने कहा -'अच्छा!'