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"अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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− | '''खुर्शीद''' - सूर्य, '''रंज''' - तकलीफ़, '''गमतलब'''- दुख पसन्द करने वाले | + | ए काश तेरे बाद गुजरते कोई दिन और |
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+ | राहत थी बहुत रंज में हम गमतलबों को | ||
+ | तुम और बिगड़ते तो संवरते कोई दिन और | ||
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+ | गो तर्के-तअल्लुक था मगर जाँ पे बनी थी | ||
+ | मरते जो तुझे याद ना करते कोई दिन और | ||
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+ | उस शहरे-तमन्ना से फ़राज़ आये ही क्यों थे | ||
+ | ये हाल अगर था तो ठहरते कोई दिन और | ||
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+ | '''खुर्शीद''' - सूर्य, '''रंज''' - तकलीफ़, '''गमतलब'''- दुख पसन्द करने वाले | ||
+ | '''तर्के-तअल्लुक''' - रिश्ता टूटना( यहाँ संवाद हीनता से मतलब है) | ||
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21:15, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और
उस कू-ए-मलामत में गुजरते कोई दिन और
रातों के तेरी यादों के खुर्शीद उभरते
आँखों में सितारे से उभरते कोई दिन और
हमने तुझे देखा तो किसी और को ना देखा
ए काश तेरे बाद गुजरते कोई दिन और
राहत थी बहुत रंज में हम गमतलबों को
तुम और बिगड़ते तो संवरते कोई दिन और
गो तर्के-तअल्लुक था मगर जाँ पे बनी थी
मरते जो तुझे याद ना करते कोई दिन और
उस शहरे-तमन्ना से फ़राज़ आये ही क्यों थे
ये हाल अगर था तो ठहरते कोई दिन और
कू-ए-मलामत - ऐसी गली, जहाँ व्यंग्य किया जाता हो
खुर्शीद - सूर्य, रंज - तकलीफ़, गमतलब- दुख पसन्द करने वाले
तर्के-तअल्लुक - रिश्ता टूटना( यहाँ संवाद हीनता से मतलब है)