भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अच्छा लगता / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:35, 20 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मुझको कौवा अच्छा लगता
काँव-काँव करने आता है
मुझको कुत्ता अच्छा लगता
दरवाजे पर आ जाता है
मुझको बिल्ली अच्छी लगती
करती रहती क्याऊँ म्याऊँ
जैसे कहती है, खाना दो
तब फिर और कहीं मैं जाऊँ
मुझको हाथी अच्छा लगता
वह कितना भारी होता है
मुझको अजगर अच्छा लगता
जो दिनभर केवल सोता है
मुझको कोयल अच्छी लगती
वह कितना मीठा गाती है
मुझको चिड़िया अच्छी लगती
वह गाती-गाती आती है
मुझको अच्छे लगते सारस
लंबी-लंबी टाँगों वाले
मुझको अच्छे लगते बगुले
दिन भर ध्यान लगाने वाले
अच्छे लगते सारे पक्षी
अच्छे लगते हैं पशु सारे
अच्छे लगते बाग-बगीचे
वृक्षों वाले वन हरियारे
किसने देखी दुनिया सारी
किसने देखी सारी धरती
पर अपनी चीजों से धरती
सबके मन में खुशियाँ भरती।