भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अच्छा होता / प्रदीपशुक्ल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 +
}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
<poem>
 
<poem>

07:59, 4 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

अच्छा होता चाँद हमारे
घर के ऊपर होता
कभी-कभी रातों में उसका
हाथ पकड़ कर सोता

आसमान की सारी बातें
वो मुझको बतलाता
रूठ गए तारों के किस्से
गा कर मुझे सुनाता

छुट्टी के दिन मुझको लेकर
दूर गगन में जाता
अन्तरिक्ष के नीले वन में
सैर मुझे करवाता

पास किसी तारे के घर में
रुक कर खाना खाते
खा पी कर जल्दी से वापस
अपने घर आ जाते

बिजली जाती घर के अन्दर
उसको हम ले आते
और चाँदनी में हम सारे
खुल कर हँसते-गाते

एक झिंगोला सिलवा देते
जाड़ों में जब रोता
अच्छा होता चाँद हमारे
घर के ऊपर होता