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"अछूत की शिकायत / हीरा डोम" के अवतरणों में अंतर

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बेधरम होके रंगरेज बानि जाइबिजां,
 
बेधरम होके रंगरेज बानि जाइबिजां,
 
हाय राम! धसरम न छोड़त बनत बा जे,
 
हाय राम! धसरम न छोड़त बनत बा जे,
बे-धरम होके कैसे मुंहवा दिखइबि ।।१।।
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बे-धरम होके कैसे मुंहवा दिखइबि॥१॥
  
 
खंभवा के फारी पहलाद के बंचवले।
 
खंभवा के फारी पहलाद के बंचवले।
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कानी उँगुरी पै धैके पथरा उठले।
 
कानी उँगुरी पै धैके पथरा उठले।
 
कहंवा सुतल बाटे सुनत न बाटे अब।
 
कहंवा सुतल बाटे सुनत न बाटे अब।
डोम तानि हमनी क छुए से डेराले ।।२।।
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डोम तानि हमनी क छुए से डेराले॥२॥
  
 
हमनी के राति दिन मेहत करीजां,
 
हमनी के राति दिन मेहत करीजां,
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जेत उहओं बेगारीया में पकरल जाइबि।
 
जेत उहओं बेगारीया में पकरल जाइबि।
 
मुँह बान्हि ऐसन नौकरिया करत बानीं,
 
मुँह बान्हि ऐसन नौकरिया करत बानीं,
ई कुल खबरी सरकार के सुनाइबि ।।३।।
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ई कुल खबरी सरकार के सुनाइबि॥३॥
  
 
बभने के लेखे हम भिखिया न मांगबजां,
 
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सहुआ के लेखे नहि डांड़ी हम जोरबजां,
 
सहुआ के लेखे नहि डांड़ी हम जोरबजां,
 
अहिरा के लेखे न कबित्त हम जोरजां,
 
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पबड़ी न बनि के कचहरी में जाइबि ।।४।।
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पबड़ी न बनि के कचहरी में जाइबि॥४॥
  
 
अपने पहसनवा कै पइसा कमादबजां,
 
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हमनी क इनरा के निगिचे न जाइलेजां,
 
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पांके से पिटि-पिटि हाथ गोड़ तुरि दैलैं,
 
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हमने के एतनी काही के हलकानी ।।५।।
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हमने के एतनी काही के हलकानी॥५॥
 
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यह कविता महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित ‘सरस्वती’ (सितंबर 1914, भाग 15, खंड 2, पृष्ठ संख्या 512-513) में प्रकाशित हुई थी।
 
यह कविता महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित ‘सरस्वती’ (सितंबर 1914, भाग 15, खंड 2, पृष्ठ संख्या 512-513) में प्रकाशित हुई थी।

16:35, 3 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

हमनी के राति दिन दुखवा भोगत बानी
हमनी के साहेब से मिनती सुनाइबि।
हमनी के दुख भगवानओं न देखता ते,
हमनी के कबले कलेसवा उठाइबि।
पदरी सहेब के कचहरी में जाइबिजां,
बेधरम होके रंगरेज बानि जाइबिजां,
हाय राम! धसरम न छोड़त बनत बा जे,
बे-धरम होके कैसे मुंहवा दिखइबि॥१॥

खंभवा के फारी पहलाद के बंचवले।
ग्राह के मुँह से गजराज के बचवले।
धोती जुरजोधना कै भइया छोरत रहै,
परगट होके तहां कपड़ा बढ़वले।
मरले रवनवाँ कै पलले भभिखना के,
कानी उँगुरी पै धैके पथरा उठले।
कहंवा सुतल बाटे सुनत न बाटे अब।
डोम तानि हमनी क छुए से डेराले॥२॥

हमनी के राति दिन मेहत करीजां,
दुइगो रूपयावा दरमहा में पाइबि।
ठाकुरे के सुखसेत घर में सुलत बानीं,
हमनी के जोति-जोति खेतिया कमाइबि।
हकिमे के लसकरि उतरल बानीं।
जेत उहओं बेगारीया में पकरल जाइबि।
मुँह बान्हि ऐसन नौकरिया करत बानीं,
ई कुल खबरी सरकार के सुनाइबि॥३॥

बभने के लेखे हम भिखिया न मांगबजां,
ठकुर क लेखे नहिं लउरि चलाइबि।
सहुआ के लेखे नहि डांड़ी हम जोरबजां,
अहिरा के लेखे न कबित्त हम जोरजां,
पबड़ी न बनि के कचहरी में जाइबि॥४॥

अपने पहसनवा कै पइसा कमादबजां,
घर भर मिलि जुलि बांटि-चोंटि खदबि।
हड़वा मसुदया कै देहियां बभनओं कै बानीं,
ओकरा कै घरे पुजवा होखत बाजे,
ओकरै इलकवा भदलैं जिजमानी।
सगरै इलकवा भइलैं जिजमानी।
हमनी क इनरा के निगिचे न जाइलेजां,
पांके से पिटि-पिटि हाथ गोड़ तुरि दैलैं,
हमने के एतनी काही के हलकानी॥५॥


यह कविता महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित ‘सरस्वती’ (सितंबर 1914, भाग 15, खंड 2, पृष्ठ संख्या 512-513) में प्रकाशित हुई थी।