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अजब-अनोखी दुनिया / निशान्त जैन

अजब-अनोखी प्यारी दुनिया,
लगती सबसे न्यारी दुनिया,
इस दुनिया के खेल नवेले,
जीव-जंतु प्यारे अलबेले।

अजब-गजब हैं रंग धरा के,
कैसे खेल खिलाती है,
टीचर कहती गोल है दुनिया,
मुझको चपटी लगती है।
 
इस दुनिया में कैसे-कैसे,
पशु-पक्षी हैं भरे पड़े,
कोई छोटा कोई मोटा,
जाने कैसे रंग भरे।
 
लंबी गर्दन है जिराफ की,
ऐसी जैसे हो खंभा,
जंबो हाथी इतना भारी,
लेना मुश्किल है पंगा।