Last modified on 11 जुलाई 2016, at 05:58

अजब-गज़ब / सुकुमार राय

भाई, सुनो, सुनो तो ! रहता वाँ हक़ीम जो बूढ़ा,
सुना है हाथ से खाना खाता, हम तुम सा ही पूरा !

सारे दिन भोजन न मिले तो भूख उसे लग जाती,
आँखें उसकी मुँदने लगतीं नींद उसे जब आती।

चलते हुए सदा पाँवों को धरती पर ही धरता,
देखा हरदम आँखों से ही, सुना कान से करता।

सोता है जब, अपने सिर को रखता है सिरहाने,
चलों देखकर खु़द आते हैं, सुनकर कैसे मानें ?

सुकुमार राय की कविता : अबाक काण्ड (অবাক কাণ্ড) का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित