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अजब इक साया-ए-लाहूत में तहलील होगी / रफ़ीक़ संदेलवी

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अजब इक साया-ए-लाहूत में तहलील होगी
फ़ुसूल-ए-हश्र से हैअत मिरी तब्दील होगी

किए जाएँगे मेरे जिस्म में नूरी इज़ाफ़े
किसी रौशन सितारे पर मिरी तक्मील होगी

दिया जाएगा ग़ुस्ल-ए-अव्वलीं मेरे बदन को
तिलिस्मी-बाग़ होगा उस के अंदर झील होगी

कभी पहुँचेगा हिस्स-ए-सामेआ तक हर्फ़-ए-ख़ुफ़्ता
कभी आवाज़-ए-ना-मालूम की तर्सील होगी

कभी उक़दे खुलेंगे इस असातीरी ज़मीं के
कभी उस दास्तान-ए-कुहना की तावील होगी