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अजब नजारे / लता पंत - अवतरण इतिहास
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<poem>हवा चल रही तेज बड़ी थी,<br />
एक खटइया कहीं पड़ी थी!<br />
उड़ी खटइया आसमान में,<br />
फिर मच्छर के घुसी कान में!<br />
वहीं खड़ा था काला भालू,<br />
बैठ खाट पर बेचे आलू।<br />
आलू में तो छेद बड़ा था,<br />
शेर वहाँ पर तना खड़ा था!<br />
लंबी पूँछ लटकती नीचे,<br />
झटका दे-दे मुनिया खींचे!<br />
खिंची पूँछ तो गिरा शेर था,<br />
गिरते ही बन गया बेर था!<br />
बेर देखकर झपटा बंदर,<br />
खाकर पहुँचा पार समंदर!<br />
पार समंदर अजब नजारे,<br />
दिन में दीख रहे थे तारे!<br />
तारों बीच महल था भारी,<br />
राजा की जा रही सवारी!<br />
छोड़ सवारी राजा-रानी,<br />
उठा बाल्टी भरते पानी!<br />
मीठा था मेहनत का पानी,<br />
पीकर झूमें राजा-रानी!<br />
अच्छा भैया, खतम कहानी,<br />
अब तो मुझे पुकारे नानी!<br />
<br />
-साभार: नंदन, अक्तूबर, 1992, 28<br />
</poem></div>
Anupama Pathak