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अजब है दास्तां तेरी ऐ ज़िन्दगी / शैलेन्द्र

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अजब है दास्ताँ तेरी ऐ ज़िंदगी
कभी हँसा दिया रुला दिया कभी
अजब है दास्ताँ तेरी ऐ ज़िंदगी

तुम आई माँ की ममता लिये तो मुस्कुराये हम
के जैसे फिर से अपने बचपन में लौट आये हम
तुम्हारे प्यार के
इसी आँचल तले
फिर से दीपक जले
ढला अंधेरा जगी रोशनी
अजब है दास्ताँ ...

मगर बड़ा है संगदिल है ये मालिक तेरा जहाँ
यहाँ माँ बेटो पे भी लोग उठाते है उंगलियाँ ) २
कली ये प्यार की
झुलस के रह गई
हर तरफ़ आग थी
हँसाने आई थी रुलाकर चली
अजब है दास्ताँ ...