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अजीब कुछ भी नहीं है सब कुछ क़यास में है / हरिराज सिंह 'नूर'

अजीब कुछ भी नहीं है सब कुछ क़यास में है।
वो भेड़िया है जो मेमने के लिबास में है।

फलों का राजा भी अब मिलेगा न हमको शीरीं,
बला की तुर्शी मआशरे की मिठास में है।

नहीं है आसान दुश्मनी को बनाए रखना,
कि दुश्मनी का हाथ ख़ौफ़ो-हिरास में है।

मुवक्किलों की सुनेगा कैसे कि आज मुंसिफ,
मसर्रतों से सजे-सजाए निवास में है।

वो पी चुका है शराब इतनी कि कुछ न पूछो,
कमाल ये है कि ‘नूर’ होशो-हवास में है।