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अजीब तर्ज़े-ए-मुलाक़ात / परवीन शाकिर का नाम बदलकर अजीब तर्ज़े-मुलाक़ात / परवीन शाकिर कर दिया गया है
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अजीब तर्जतर्ज़-ए-मुलाकात मुलाक़ात अब के बार रही<br>तुम्हीं थे बदले हुए या मेरी निगाहें थीं<br>तुम्हारी नजरों नज़रों से लगता था जैसे मेरे बजाए<br>तुम्हारे ओहदे की देनें तुम्हें मुबारक थीं<br>
सो तुमने मेरा स्वागत उसी तरह से किया<br>जो अफ्सरानअफ़सराने-ए-हुकूमत के ऐतक़ाद में है<br>तकल्लुफ़ान तक़ल्लुफ़न मेरे नजदीक नज़दीक आ के बैठ गएफिर एहतराम<brref>आदर</ref>फिर 1एहतराम से मौसम का जिक्र ज़िक्र छेड़ दिया<br>1आदर <br>
कुछ उस के बाद सियासत की बात भी निकली<br>
अदब पर भी दो चार तबसरे फ़रमाए<br>
मगर तुमने ना हमेशा कि तरह ये पूछा<br>
कि वक्त कैसा गुजरता है तेरा जान-ए-हयात ?<br><br>
पहर दिन कुछ उस के बाद सियासत की 2अज़ीयत में कितनी शिद्दत है<br>बात भी निकलीउजाड़ रात की तन्हाई क्या क़यामत है<br>अदब पर भी दो चार तबसरे फ़रमाएमगर तुमने न हमेशा कि तरह ये पूछाशबों की सुस्त रावी का तुझे भी शिकवा कि वक्त कैसा गुज़रता है<br>गमतेरा जान-ए-फिराक के किस्से 3निशात-ए-वस्ल का जिक्र<br>रवायतें ही सही कोई बात तो करते.....<br>हयात ?
2अत्याचार पहर दिन की अज़ीयत<ref>अत्याचार</ref> में कितनी शिद्दत हैउजाड़ रात की तन्हाई क्या क़यामत है3मिलन शबों की सुस्त-रवी का तुझे भी शिकवा हैग़म-ए-फ़िराक़ के क़िस्से निशात-ए-वस्ल<ref>मिलन की खुशी</ref> का ज़िक्र रवायतें ही सही कोई बात तो करते.....</poem>{{KKMeaning}}