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अजूबा प्राणी / निवेदिता चक्रवर्ती

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'सत्यमेव जयते', 'असतो मा सदगमय'
तुमने इनको सुना
किंतु ये क्या?
इन शब्दों को ह्रदय की ग्रंथियों में गूंथ डाला?
आपादमस्तक स्वयं को इनमें तुमने ढाला?
जो इन शब्दों को मात्र पढ़ा होता
इनके अर्थों को न बाँचा होता
इनको अपने रक्त में न माखा होता
तो तुम भी उस युग के अजूबे प्राणी न कहलाते
तुम भी मनुष्यों की श्रेणी में आ जाते!!

मानवता तुम्हारे लिए भी कोई प्रश्न न रह गया होता
कोई स्वार्थ का कीड़ा तुम्हारे कानों में भी घुस गया होता
आगे बढ़ने की अंधी दौड़ में तुम भी शामिल हो गए होते
'सफल व्यक्ति' कहलाने के तुम भी काबिल हो गए होते
खड़े-खड़े संस्कृतियों का जो तुम भी उपहास उड़ा जाते
तो तुम भी इस युग के अजूबे प्राणी न कहलाते
तुम भी मनुष्यों की श्रेणी में आ जाते!!

बलात्कार के भयानक हादसे तुम्हारे लिए होते
किस्से आतंकी घटनाओं से तुम्हारे दिल के न होते हिस्से
जो तुम्हारे भी सहस्रों चेहरे हो गए होते
चेतन-अवचेतन तुम्हारे बहरे हो गए होते
मानवता के निर्धारित मूल्यों को जो तुम हिला जाते
तो तुम भी इस युग के अजूबे प्राणी न कहलाते
तुम भी मनुष्यों की श्रेणी में आ जाते!!

किन्तु इस युग के अजूबे प्राणी, तुम हो कहाँ?
तुम आज भी हमारी आत्माओं में सुरक्षित हो
आज भी हमारी चेतनाओं में जड़ित हो

जो तुम तनिक बाहर आते
हमारे व्यक्तित्व पर छा जाते
मानव होने की हम सब पहचान तो न खो देते!!
ईश्वर भी अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति पर न रो देते!!