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अड़सठ / प्रमोद कुमार शर्मा

क्यां तांई बण्यो सबद
-क्यां तांई स्रिस्टी
सोचूं जणै मन मांय गमी हूज्यै
म्हारी आंख्यां मांय नमी हूज्यै

अेक टोपो बिरम रो
रची
-आ गिरस्थी
जकै मांय चौरासी कुरळावै है
फगत सबद ई तोड़ै
-आ गिरफ्ती!