भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अड़हूल फूलवा हो राम... / अंगिका

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:55, 12 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=अंगिका }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सीताराम शीतल मैया अंगनमा अड़हुल फूल गछिया हो राम।
फूल फूल उरमल वो द्वार।
सीताराम उत्तरॅ जेॅ राजॅ से- आइलै हरिहर सुगना हो राम।
बैठी रे गेलै अड़हुल फूल वो डार।
कुछु फूल खैलेॅ रे सुगना- कुछु फूल गिरैलै हो राम।
कुछु रे फूल करले हो बरबाद।
घरें सें बाहरोॅ भइली- शीतला हेनी मैया हो राम
पड़ी रे गइलै सुगना मुख ढीठ।
सीताराम सुगना के देखी- माताराम बड़ खुश भइली हो राम।
फूलवा रे देखी- नयना ढरै वो लोर।
घरेॅ पिछवाड़ी बसै- भैरोलाल योगिया हो राम।
सुगना रे मोरा दियवै हो बझाय।
सीताराम सुगना बझौनी- माता किए देवे दानवा हो राम।
तब रे देवौ सुगना रे बझाय।
सुगना बझौनी भैरोलाल कानेॅ दोनों सोनमा हो राम।
आरू दे देवौ गल्ले निरमल हार।
अगिया लगैवौ माता राम कानेॅ दोनों सोनमा हो राम-
बजड़ा रे खसैवौ गल्ले निरमल हार।
हमहूँ जे लेभौ माता राम...
हाथहूँ के यशवा हो मुल्कें- मुल्कें लेभौ तोरोॅ नाम।
देलियौ जे देलियौ भैरोलाल- हाथहूँ के यशवा हो राम।
मुल्कें-मुल्कें मोरा नाम।
डारी-डारी भैरो लाल फन्दवा लगैलकै हो राम।
पातेॅ रे पातेॅ सुगना रे मँडराय।
डारी पाती भैरो लाला- फन्दवा लगैलकै हो राम।
सुगना रे उड़ी लागलै हो आकाश।