Last modified on 25 मार्च 2012, at 12:21

अड़ी रही / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:21, 25 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मांगते मांगते
मेरी मैं -मर
गई - पर
मैं नहीं मरी ...
 
दीठ सी
जिन्दगी
दीठों की
तरह
अंदर अड़ी रही ...
 
चाहा था
जिन्दगी
चले अपने -आप
उछलती -फलांगती
छलांगे-लगाती
पर खड़ी रही
बैसाखियों पर
अड़ी - अड़ी ....
 
आज कैसे -तैसे
ले आई हूँ
तेरे द्वार
उखड़ी - बिखरी
मरी मरी ....