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अदब को जिंस-ए-बाज़ारी न करना / दिलावर 'फ़िगार'

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अदब को जिंस-ए-बाज़ारी न करना
ग़ज़ल के साथ बद-कारी न करना

सिवा-ए-जाँ यहाँ हर शय गिराँ है
कराची में ख़रीदारी न करना

जो हल्दी से मोहब्बत है तो यारो
किसी चूहे को पंसारी न करना

फ़कत क़ौव्वाल समझे इस का मतलब
ग़ज़ल को इतना मेयारी न करना

जो अख़्तर हैं यहाँ उन में ख़ुदा-या
किसी को अख़्तर अंसारी न करना

ग़ज़ल पढ़ना जो मुँह में पान रख कर
मेरे कपड़ो पे गुल-कारी न करना