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अदीठ काळ / कन्हैया लाल सेठिया

करै
अदीठ वार
कायर काळ,
कानी काटै
माथो’र धड़
नही बैवै रगत
राखै साबत
खोळियो
पण काट दै
छानै सी’क
अन्न पाणी रै
पूतळै जीव री
रस री सीर,
कोनी जोड़ सकै
पाछी बीं सीर नै
कोई बूंटी रो लेप
कोई संजीवणी घूंटी !
मरै सूख सूख’र
बापड़ा देहधारी,
बण ज्यावै
सुरंगी बणराय
जाबक बळीतो
बचा सकै इण कजा स्यूं
जे कोई
तो बा है
इन्दर बाबै री
बादळ री झारी
अमरित धारी,
नहीं’स
निरथक है
टूणां टटका
झाड़ फूंक
औखध
उपचार !