भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अद्भुत स्वप्न / सुमन ढींगरा दुग्गल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात देखा स्वप्न एक अद्भुत सा अति सुंदर
खड़े थे मुझे घेरे ,वर्णमाला के सभी अक्षर

लगे पूछने मौन बैठी हो क्यों उदास,अकेली
उठो खेलेंगे साथ तुम्हारे बन के संगी,सहेली

लगे कौंधने चितेरे स्वराक्षर बिखर बिखर
बोले चुनो हमें आलि मनभावन सजाकर

दो सार्थक स्वरूप ,करो सुकुमार भावों को व्यक्त
जुड़ जुड़ कर बनायेंगे हम कोई नवीन अर्थ

 पिरोओ मनचाहा,मोती की लड़ियों से सज जाऐगे
गुँथ उन अर्थों में हँसेंगे,रोयेंगे संग गुनगुनायेंगे

रहेंगे संग तुम्हारे बिना शर्त,प्रसन्नवदन हर पल
दे सकूँगी क्या रूप अनूप बोली मैं होकर विकल

बोले वर्ण,शंका न कर साथी तेरे बन जाऐंगे
खुली आँख,सोचा क्या स्वप्न सच हो पाऐगे

पढने को पलटती हूँ पृष्ठों को मैं जब जब
लगता है नेत्रो में भर मैत्री वर्ण अभी मुस्कुरायेंगे