भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधखुलीं पलकैं, अलक लटकति मंजु / सोमनाथ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अधखुलीं पलकैं, अलक लटकति मंजु,
चंदमुखी निकट, भुजंगिनी भुलानी सी।
मरगजी सारी, अंग-भूषन कँ के कँ,
पीछे संग सोहतिं, सहेलीं अरसानी सी॥

डगै डगमगी, निसि जगी, सब 'सोमनाथ,
झलकैं कपोलनि में, पीक सुखसानी सी।
एडि ऍंगिराति औ जंभाँति, मुसक्याति बाल,
मंद-मंद आवति, पुरंदर की रानी सी॥