भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधर-अधर को ढूँढ रही है / कुँअर बेचैन

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 25 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन }} {{KKCatNavgeet}} <poem> अधर-अधर को ढूँढ रही है,ये ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अधर-अधर को ढूँढ रही है,ये भोली मुस्कान
जैसे कोई महानगर में ढूँढे नया मकान

नयन-गेह से निकले आँसू ऐसे डरे-डरे
भीड़ भरा चौराहा जैसे, कोई पार करे
मन है एक, हजारों जिसमें बैठे हैं तूफान
जैसे एक कक्ष के घर में रुकें कई मेहमान

साँसों के पीछे बैठे हैं नये-नये खतरे
जैसे लगें जेब के पीछे कई जेब-कतरे
तन-मन में रहती है हरदम कोई नयी थकान
जैसे रहे पिता के घर पर विधवा सुता जवान