Last modified on 19 मार्च 2020, at 23:27

अधूरा चाँद / मनीष मूंदड़ा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:27, 19 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष मूंदड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे चाँद पर कभी दो पल ठहर के देखो
तुम्हारी ही ओर तकता रहता है
मेरे काँधे पर रुकता चलता
मुझसे तुम्हारी ही बातें करता रहता है
मुझसे तुम्हारे कभी होने
कभी न होने का सबब पूछता है
और मैं कुछ नहीं बोल पाता
सिर्फ उसमें तुम्हारी तस्वीर उकेरता रहता हूँ

(कुछ रिश्तों का गवाह सिर्फ़ चाँद ही तो होता है
तभी तो सबको पूरा कर
खुद अधूरा रहता है...)