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अधूरा चाँद / मनीष मूंदड़ा

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मेरे चाँद पर कभी दो पल ठहर के देखो
तुम्हारी ही ओर तकता रहता है
मेरे काँधे पर रुकता चलता
मुझसे तुम्हारी ही बातें करता रहता है
मुझसे तुम्हारे कभी होने
कभी न होने का सबब पूछता है
और मैं कुछ नहीं बोल पाता
सिर्फ उसमें तुम्हारी तस्वीर उकेरता रहता हूँ

(कुछ रिश्तों का गवाह सिर्फ़ चाँद ही तो होता है
तभी तो सबको पूरा कर
खुद अधूरा रहता है...)