भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधूरा पन / मधु प्रधान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीतों में एक अधूरापन
पर क्या खोया मन न जाने।

जो कोलाहल से जन्मी है
अनुभूति उसी नीरवता कि
रंगों के झुरमुट में बिखरी
हिम-सी गुमसुम एकरसता कि

अहसास ढूंढ़ती आखों में
जो मिले कहीं पर पहचाने॥

है व्यथा-कथा उन परियों की
जो पंख खोजती भटक रहीं
पीड़ा अधचटकी कलियों की
जो कहीं धूल में सिसक रहीं

तड़पन बिसरे मधुगीतों की
जिनके गायक थे अनजाने॥

उल्लास मिला तो कुछ ऐसे
पानी में चन्दा कि छाया
अन्तस् की सूनी घाटी को
दिव-स्वप्नों से बहलाया

मरुथल में जल की छलना
प्यासी हिरनी को भरमाने॥