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अधूरी कवितावां बाबत / नीरज दइया

Kavita Kosh से
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म्हनै कवितावां नै संभळायो जीसा
पण म्हनै नीं संभळाई
आपरी कवितावां।

केई कवितावां
जिकी अंवेरै म्हनै
अर म्हैं अंवेरूं बां नै
फूठरी नीं लागै
नीं हुवण सूं हेठै
काळी टीकी!

बां कवितावां सारू
म्हारो मोटो दुख
कै बै रैयगी अधूरी।

जद-जद बतळावूं बां नै
बै डाडै, म्हारै साथै
कै बां री पीड़ परखणियो
म्हनै टाळ
बीजो कोई नीं है।
कोई नीं है!!