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अधूरे आलिंगन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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194
प्यासे अधर
तरसते युगों से
तुम्हें ढूँढते।
195
डेढ़ी डगर
घाटियाँ व गह्वर
कैसे मिलूँ मैं।
196
नदियाँ तैरी
डूबा देते सागर
आ जाओ तुम्हीं।
197
वर दो तुम्हीं
अभिशप्त जीवन
फिर जी उठे।
198
स्वप्न अधूरे
अधूरे आलिंगन
क्या होंगे पूरे?
199
क्या पाप -पुण्य
कौन देव -असुर
नियति जाने।
200
माँगा मिलन
दे दी है क्यो जुदाई
समझे नहीं।
-0-25-12-2019