भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अध्यात्म / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:28, 20 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उठो उँकार दश द्वार के देव हरि, पाँच पच्चीस मिलि केर कलोलैँ।
अधर अस्थान जँह द्वादशा पान, तँह धरनि धध्यिान निर्वाण बोलै॥
हृदय कमलासने सकल भल नाशने, बिना गुरु विकट पट कौन खोलै।
जागते सोवते दसों दिशि रैन दिन, रहस रघुनाथ जन साथ डोलै॥3॥