अनगिन हैं ज़ख़्म तन पर अब तुमसे क्या छुपाना
काँटों का उसपे बिस्तर अब तुमसे क्या छुपाना
गर्दन से अपनी मैं ये गमछा हटा लूँ कैसे
काफ़ी फटा है कॉलर अब तुमसे क्या छुपाना
देखी है मैंने बूढे़ माँ-बाप की ये हालत
जैसे हों घर के नौकर अब तुमसे क्या छुपाना
घर में जवान बेटी, बेरोज़गार बेटा
दोनों हैं दिल पे पत्थर अब तुमसे क्या छुपाना
ख़ुद्दारियों से ज़्यादा ये पेट था ज़रूरी
सहते रहे अनादर अब तुमसे क्या छुपाना
ये सब्र की नसीहत अपने ही पास रक्खो
पानी है सर से ऊपर अब तुमसे क्या छुपाना
हर बात क़ायदे की हमसे छुपा गया है
कहता रहा बराबर अब तुमसे क्या छुपाना