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अनदेखे सपनों में एक नाम जोड़ दो / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

अनदेखे सपनों में एक नाम जोड़ दो।
परिचित प्रगल्भता से नेह रस निचोड़ दो॥

कर डालो भावी की
एक नयी कल्पना।
आँगन में रचो नये
युग की संकल्पना।

आगत के हेतु बंद सुधियों के तोड़ दो।
अनदेखे सपनों में एक नाम जोड़ दो॥

मत देखो सड़कों पर
रोते अपनेपन को ,
मत ढूंढो भीड़ बीच
बिखरे अवलंबन को।

सूनी अमराई की नीरवता मध्य कहीं
भटक रही वीरानी का आनन मोड़ दो।
अनदेखे सपनों में एक नाम जोड़ दो॥

सूख चुकी ममता है
आहत कौशल्या।
पग पग पर ठोकर में
बिखरी अहिल्या।

पतितों की मुक्ति हेतु जन्मेंगे राम नहीं
विगत की विरद के न वास्ते करोड़ दो।
अनदेखे सपनों में एक नाम जोड़ दो॥

कितनी ही द्रुपदाओं
की सारी खिंच जाती ,
कितने ही अधरों की
मुस्कानें भिंच जातीं।

ऐसा वर्तमान त्याग सपनों में मत भटको
बनाये घरौंदों को आज स्वयं तोड़ दो।
अनदेखे सपनों में एक नाम जोड़ दो॥