Last modified on 18 मई 2017, at 10:48

अनन्त क्षितिज / नकुल सिलवाल

Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:48, 18 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नकुल सिलवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखे क्षितिज
र ठाने आफुलाई
म त्यँहासम्म फैलिएको छु ,
के माथितिर घुमाए आँखा
आकाश थियो नीलो न नीलो
खसाले आँखा तलतिर
सागर थियो अनन्त…..