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अनहारक हम हरब / रूपम झा

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धराक गुजगुज अनहारक हम हरब
हम निरंतर दीप बनि-बनि कड जरब

मोन सँ आसा ने कखनहुँ घटि सकत
खूब पावन कर्म के गंगा बहत
रहब हम संघर्षरत जा धरि बचब
ज्ञान के नव-नव शिखर नित-नित चढ़ब

गीत नूतन पसरि जायत बाध-बन धरि
स्वर हमर गूँजैत रहत धरती गगन घरि
रहब हम माँटीक कण-कण मे समाहित
धरा पर नित पुष्प बनि-बनिक बहब

काँट पर चलिते रहै छी राति-दिन
होयत अछि कखनहुँ मुदा नहि मुख मलिन
हम सदतिखन बाट पर चलिते रहब
सूर्य के बटी छलहुँ नित नव उगब