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अनाम रिश्ते / उर्मिल सत्यभूषण

तेरे मेरे बीच उगे हैं
जो रिश्ते गुमनाम
साथी उनको नाम
न देना, होंगे ये बदनाम
मेरे अन्तर के सुर गूँजे
तेरे अन्तर में जाकर
मेरी किरणें और आलोकित
हुई प्रीाा तेरी पाकर
ये आक के फूल नहीं
बंधु के केशर धाम
चन्दन वन की गंध न जानी
तो यह किसी भूल
कैसा जं़ग, धुँआ कैसा रे
कौन उड़ाता धूल
मन की पुस्तक के पन्नों पर
साथ-साथ दो नाम
मेरी पुस्तक गीता हो
चाहे तेरी रामायण
दोहे और श्लोक कर रहे
प्रीत प्रेम का गायन
प्रियतम में प्रभु पाया हमने
कृष्ण कहो या राम।