भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनाम रिश्‍तों का दर्द / ईश्‍वर दत्‍त माथुर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:07, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईश्‍वर दत्‍त माथुर |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> अनाम रिश…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अनाम रिश्‍तों में कोई दर्द कैसे सहता है,
खून के बाद नसों में पानी जैसा बहता है ।

जरा सी ठेस से दिल में दरार आ जाती है,
बादे सब भूल के वो अजनबी-सा रहता है ।

खुलूस-ए दिल में मोहब्‍बत का असर है उसमें,
फिर क्‍यों वो अनमना और बेरूखा-सा रहता है ।

जरा से घाव को कुरेदा लहुलुहान हुआ,
मरीजे हिज्र का अब हाल बुरा रहता है ।

दिल हो जब बोझिल तो सुकून आता नहीं,
सारी दुनिया से ही वो अनमना-सा रहता है ।

उसने हँसकर दिखाया आइना मुझे,
देख के शक्‍ल खुद वो खौफ़ज़दा रहता है ।

मेरे नसीब में सिर्फ़ मेरे आँसू हैं,
इन्‍हें लबों से पी लूँ ये कौन कहता है ।