Last modified on 4 फ़रवरी 2011, at 15:31

अना की गाँठ में जकड़े हुए हैं / श्याम कश्यप बेचैन

अना की गाँठ में जकड़े हुए हैं
वो मुर्दों की तरह अकड़े हुए हैं

उसी में फँस के मर जाएँगे इक दिन
हम अपने जाल के मकड़े हुए हैं

फहरते थे मीनारों पर दिलों के
महज़ रंगों के अब कपड़े हुए हैं

उखाडें ना कहीं जड़ से ये हम को
जो मुद्दे आज जड़ पकड़े हुए हैं

करेंगे कल वो कर्फ़्यू की वकालत
शहर में आज जो झगड़े हुए हैं

जो गोशे थे गुलों की वादियों के
दरिंदों के खुले जबड़े हुए हैं