भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अना को ख़ुद पर सवार मैं ने नहीं क्या था / रफ़ीक़ संदेलवी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:31, 7 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रफ़ीक़ संदेलवी }} {{KKCatGhazal}} <poem> अना को ख...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अना को ख़ुद पर सवार मैं ने नहीं क्या था
तुम्हारे पीछे से वार मैं ने नहीं क्या था
वो ख़ुद गिरा था लहू-फ़रोशी की पस्तियों में
उसी नहीफ़ ओ नज़ार मैं ने नहीं क्या था
पके हुए फल ही तोड़े थे मैं ने टहनियों से
शजर को बे-बर्ग-ओ-बार मैं ने नहीं क्या था
निशाना बाँधा था आशियानों की सम्त लेकिन
कोई परिंदा शिकार मैं ने नहीं क्या था
कुछ इस क़दर थे हवास गुम-सुम कि वक़्त-ए-हिजरत
बिलकते बच्चों को प्यार मैंने नहीं क्या था
मिरे मसाइल तो ख़ुद-ब-ख़ुद ही सुलझ गए थे
कहीं भी सोच ओ विचार मैं ने नहीं क्या था