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अना को ख़ुद पर सवार मैं ने नहीं क्या था / रफ़ीक़ संदेलवी

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अना को ख़ुद पर सवार मैं ने नहीं क्या था
तुम्हारे पीछे से वार मैं ने नहीं क्या था

वो ख़ुद गिरा था लहू-फ़रोशी की पस्तियों में
उसी नहीफ़ ओ नज़ार मैं ने नहीं क्या था

पके हुए फल ही तोड़े थे मैं ने टहनियों से
शजर को बे-बर्ग-ओ-बार मैं ने नहीं क्या था

निशाना बाँधा था आशियानों की सम्त लेकिन
कोई परिंदा शिकार मैं ने नहीं क्या था

कुछ इस क़दर थे हवास गुम-सुम कि वक़्त-ए-हिजरत
बिलकते बच्चों को प्यार मैंने नहीं क्या था

मिरे मसाइल तो ख़ुद-ब-ख़ुद ही सुलझ गए थे
कहीं भी सोच ओ विचार मैं ने नहीं क्या था