Last modified on 1 नवम्बर 2009, at 23:28

अनुभव-परिपक्व / अज्ञेय

माँ हम नहीं मानते--
अगली दीवाली पर मेले से
हम वह गाने वाला टीन का लट्टू
लेंगे हॊ लेंगे--
नहीं, हम नहीं जानते--
हम कुछ नहीं सुनेंगे।

--कल गुड़ियों का मेला है, माँ।
मुझे एक दो पैसे वाली
काग़ज़ की फिरकी तो ले देना।
अच्छा मैं लट्टू नहीं मांगता--
तुम बस दो पैसे दे देना।

--अच्छा, माँ मुझे खाली मिट्टी दे दो--
मैं कुछ नहीं मांगूंगा :
मेले जाने का हठ नहीं ठानूंगा।
जो कहोगी मानूंगा।