भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनेकों प्रश्न ऐसे हैं, जो दुहराये नहीं जाते / बलबीर सिंह 'रंग'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:36, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अनेकों प्रश्न ऐसे हैं, जो दुहराये नहीं जाते।
मगर उत्तर भी ऐसे हैं, जो बतलाए नहीं जाते।

इसी कारण अभावों का सदा स्वागत किया मैंने,
कि घर आए हुए, मेहमान लौटाए नहीं जाते।
हुआ क्या आँख से आँसू अगर बाहर नहीं निकले,
बहुत से गीत भी ऐसे हैं जो गाये नहीं जाते।

अनेकों प्रश्न ऐसे हैं, जो दुहराये नहीं जाते।
मगर उत्तर भी ऐसे हैं, जो बतलाए नहीं जाते।

बनाना चाहता हूँ, स्वर्ग तक सोपान सपनों का,
मगर चादर से बाहर पाँव फैलाए नहीं जाते।
सितारों में बड़ा मतभेद है इस बात को लेकर,
धरा पर ‘रंग’ जैसे आदमी पाये नहीं जाते।

अनेकों प्रश्न ऐसे हैं, जो दुहराये नहीं जाते।
मगर उत्तर भी ऐसे हैं, जो बतलाए नहीं जाते।