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अन्तरादेश / श्रीकान्त जोशी

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इन दिनों जब समस्त अवयव दुरुस्त हैं प्रकृति की तरह
उन्हें विनयावनत दान की तरह दे दो।
ये तुम्हारी जायदाद है
ये तुम्हारी स्वतंत्रता हैं
तुम्हारे व्यक्तित्व की अर्हता हैं
इन्हें कर्ण-कुण्डलों की तरह धारण करो।
ये, निश्चय ही कल सुरक्षा हैं
आकांक्षाओं के अनेक मुकाम इन्हीं में हैं
आसमानों और समुद्रों के विज्ञान इन्हीं के मोहताज हैं
बावजूद इस सबके
इन्हें ज़रूरतों तक पहुँचने दो
इन्हें सहेजो, सहेजते रहो।
निश्चय ही कल तुम्हें घमासानों के कोलाहल सुनाई देंगे
उस वक़्त चूक मत करना
जहाँ पैरों की ज़रूरतें सुनो वहाँ
दे देना अपने पाँव
कहना, मेरे नहीं ये तुम्हारे भी हैं।
जहाँ भुजाओं के आवाहन हों
वहाँ पहुँच जाना लेकर दिशान्त-स्पर्शी फैलाव,
जहाँ दृष्टियाँ अंधकार भी न पहचानती हों
वहाँ पहुँच जाना सुबह से बेहतर सुबह की तरह,
इन दिनों जब कुछ सामथ्र्य है
चलो यह अनादि अस्तित्व लेकर
और प्रकृति का श्रेष्ठतम अवदान और
मनुष्य की पहचान की तरह दे दो।
जब समस्त अवयव दुरुस्त हैं प्रकृति की तरह
उन्हें, विनयावनत दान की तरह दे दो।